श्याम की बंसी
श्याम की बंसी की धुन सुन सुन कर गोपीकायें व्याकुल होने लगी है।
चली यमुना तीर दौड़ी-दौड़ी टोली टोली सुधी अपनी वे भूलने लगी है।
मोद भरे घनश्याम के मोह में पुलकित होकर उलझने लगी है।
कान्हा की मुरली की मधुर आवाज से कंटिका भी फूल सी लगने लगी है।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’