शौहरत झूठे नाम की
*** शौहरत झूठे नाम की (ग़ज़ल) ***
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बदली ज़माने ने इबाबत राम की,
अब ना रही खातिर कहीं पर काम की।
इंसान हैं बेकार कुछ करता नहीं,
दौलत नशे में फिक्र ना अंजाम की।
कब जानता कोई यहाँ कीमत नहीं,
गाता रहे वो शौहरत झूठे नाम की।
देखी दुनियां है घूम कर सारे जहां,
होती हुकूमत है सदा ईमाम की।
देखे वहाँ भूखे सदा बैठे खफ़ा,
मिलती नहीं है खीर वो बादाम की।
दिन रात मनसीरत लगा रहता बता,
परवाह कब है की कभी आराम की।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)