शौक
*व्यंग्य कविता
आपके शौक
छीन लेते है.
उनके हक,
.
फर्क नहीं पडता
फिर
कोई बसे या उजड़े
.
आपके शौक
श्मशान की राख पर,
आपकी शाख
बनी रहनी चाहिए..
*व्यंग्य कविता
आपके शौक
छीन लेते है.
उनके हक,
.
फर्क नहीं पडता
फिर
कोई बसे या उजड़े
.
आपके शौक
श्मशान की राख पर,
आपकी शाख
बनी रहनी चाहिए..