“शौक से सारी दुनिया”
“शौक से सारी दुनिया”
==============
शौक से सारी दुनिया,
खड़ी है तलवार की धार पर।
विनाश काले, विपरीत बुद्धि ,
सुई नहीं काल है,
अटल है माथे की रेखा,
नाच रही अभिमान पर ।
देख! समय बलवान है,
मनुष्य तो बस गुलाम है ,
तब क्यों पहरा है?
बुद्धिहीन अहंकार पर।
शौक से सारी दुनिया,
खड़ी है तलवार की धार पर।।
वर्षा(एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया