“शोर”
हो गया अंधेर अब इसका ही शोर है।
चोर खुद बना रहा ईमानदार को चोर है।
सत्य ना झुका है ना हुआ कभी पराजित।
लगा ले बाजुओ में तूं अब जितना जोर है।
डर गया होगा कोई तेरी इन चालाकियों से।
इस तरह की चर्चा आजकल चारो ओर है।
मैं आसमान का बहका हुआ पतंग नही।
जिसका तू समझ रहा हाथ तेरे डोर है।
ना समझना अमावस के उस चाँद की तरह।
जिसको घेरे रहती काली घटा घनघोर है।
मुझे डर नही क्योकि मेरा ईश्वर मेरे साथ है।
मुझे लगता है कि तेरा खुदा कोई और है।
क्योकि तू अंधेरा परस्त खुदगर्ज़ और चोर है।
मेरा मन सत्य के सूरज का चमकता भोर है।
हो गया अंधेर अब इसका ही शोर है।
@सर्वाधिकार सुरक्षित
मनीष कुमार सिंह ‘राजवंशी’