शोर यूं ही…ग़ज़ल
ग़ज़ल
—–
शोर यूंही परिन्दो ने मचाया होगा।
मैं जिसे ढ़ूढ़ रही मेंरा ही साया होगा।
ग़ौर से सुनती मै अफसाना सनम।
ग़र होता इल्म आप ने फरमाया होगा।
पकड़े बैठें हो उस तसव्वुर को।
किसी ने यूंही ध्यान भरमाया होगा।
ठेस न पहुॅचे कही तेरे दिल को।
यूंही किस्सा वो तुमको न सुनाया होगा।
काश! होते मेंरी जान तुम जाने जाना।
दिल को यें सोच के बहलाया होगा।
हद ही करते हो तुम आए दफ़ा।
मैंने मुद्दत में तुम्हे शिद्दत से बुलाया होगा
ठुकरा के चल दियें पैग़ाम मेरा वो-ए- सुधा।
मैंने इज़हार-ए-मोहब्बत ही जताया होगा।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड