शोर क्यों ?
शोर क्यों है ?
बेटी बचाओ, बेटी बचाओ |
क्या बीमार हैं हम ?
या लाचार हैं हम ?
जब लाचार हम नहीं, बीमार हम नहीं !
तो बचाओ-बचाओ का विवाद कैसा ?
पहले खुद पराधीन बनाते,
फिर कहते बेटी बचाते !
हमने ही रची सृष्टि,
फिजाओं में खुशबू भरी,
रंगों की पहचान की,
जग का श्रृंगार की,
फिर भी हम कहलाते निराधार,
ऐसे जीवन को धिक्कार !
है, बस ख्वाइश इतनी,
सबलता की पहचान करो,
महता को स्वीकार करो,
हमारे अस्तित्व को अंगीकार करो |
बदलो मत प्रकृति हमारी,
स्वरुप को दो स्वीकृति तुम्हारी |
स्वछन्द विकास की परंपरा गढ़ो,
झूठे आवरण, हम पर न मढ़ो |
हमसे हुई रचना तुम्हारी,
वंश का किया हमने विस्तार,
सिखाया देवतुल्य संस्कार भी,
मानवता का संचार किया,
भूमिकाओं का सम्मान किया,
हमारी पुनरुत्पादकता का मान धरो,
अब,
ईश्वरीय निर्णय का सम्मान करो |
साहस देकर, संबल देकर,
और देकर सम्मान भी,
हमने दी योग्यता तुम्हें,
और बनाया महान भी,
किया हमने तुम्हें,
निरन्तर सशक्त,और,
विडंबना ऐसी कि तुमने ही,
हमें किया विरक्त,
फिर भी, न शिकायत,
न कभी तुम्हारा अपमान की |
हमारे ही उत्थान के नाम पर,
होता है प्रतिदिन व्यापार,
हमें नहीं आती राजनीति,
हमने गढ़ा परिपक्व संसार,
दिखाई थी हमने तुम्हें,
ऊँचाई चोटी की,
और तुमने तब सेंकी,
नाम पर मेरे, रोटी सत्ता की |
धन्य है यह भाग्य हमारा,
जो तुमने हमें,
उपेक्षाओं से इतना भरा !
समाज के मजबूत पहिये को,
कह-कह कर बेबस-लाचार,
मानवता को न करो शर्मसार,
गुजारिश है बस इतनी आज,
नए गढ़ो कुछ मानक खास,
आजादी की पहल करो,
रूप को मेरे पुनः पढ़ो,
नयी रचो परिभाषा मेरी |
देवी रूप की पूजा की है,
अब हमारे जरिए लिए,
फैसलों का गुणगान करो,
नारा रचो अब कुछ नया,
जिसमें हो प्रदर्शित सिर्फ,
ऊर्जा, ताकत और
संघर्षशीलता हमारी,
न कहना अब कभी बेचारी |
जीवन था दुरूह जब,
हमने सिखाई उत्तरजीविता,
जीवन में जब आई स्थिरता,
तब सिखाई रचनात्मकता,
अब चारो ओर है भागम-भाग,
तब हमने ही थामी,
सांस्कृतिक वरीयता का हाथ |
अतः नाट्य न रचो,
सुरक्षा की हमारी,
सम्मान दो, पहचान दो,
स्वीकृति दो,
अस्तित्व को हमारी,
अस्मिता का भान करो,
स्वाभिमान को स्थान दो,
इसीलिए नारा नहीं,
किनारा दो,
जिसका निर्माण,
न किसी और के द्वारा हो |
तो फिर अब,
नारा क्यों है ?
बेटी बचाओ, बेटी बचाओ,
कहना ही है तो यह कहो,
गुण बेटी का सिखाओ,
गुण बेटी का ही सिखाओ,
तो अब सिर्फ अनुरोध है,
सभी से यह,
हौसला बढ़ाओ, हौसला बढ़ाओ |
कवियित्री
रीना भारती