शोधपरक दृष्टि का परिचय देती एक कृति ‘मेरे शोध-पत्र’
पुस्तक समीक्षा:
पुस्तक: मेरे शोध-पत्र
लेखक: आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
प्रकाशक: सूर्य भारती प्रकाशन, नई सड़क, दिल्ली
पृष्ठ संख्याः118 मूल्यः 300 रू.
शोधपरक दृष्टि का परिचय देती एक कृति ‘मेरे शोध-पत्र’
-विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
‘मेरे शोध-पत्र’ हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित हरियाणा के बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ की एक ऐसी चर्चित एवं उपयोगी कृति है, जिसमें उनके यू.जी.सी. के सौजन्य से आयोजित विभिन्न राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तुत ग्यारह शोध-पत्र संकलित हैं। पुस्तक में ‘शोध या प्रतिशोध’ शीर्षक से दिए गए लेखकीय कथन से हमें पता चलता है कि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लीक से हटकर किए गए लेखन के बल पर हरियाणा में ही नहीं, बल्कि हरियाणा से बाहर भी अपनी एक विशेष पहचान बना चुके आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट की यह शोध-यात्रा जनवरी, सन् 2010 में केसरवानी स्नात्कोत्तर कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय जबलपुर से शुरू होती है। तब से लेकर अब तक यह यू.जी.सी. के सौजन्य से आयोजित दो दर्ज़न से अधिक राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में विविध विषयों पर अपने शोध-पत्र प्रस्तुत कर चुके हैं। बकोल लेखक ‘मेरे शोध-पत्र’ में संकलित शोध-पत्र परिवेशगत संघर्षों से तेज़ हुई कलम की धार और स्वाभिमानजनित शोध-दृष्टि का परिणाम हैं। इनके ये शोध-पत्र राष्ट्रीय एवं सामाजिक संदर्भों की रक्षा करने का संदेश सहेजे हुए हंैं। कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध जन चेतना को लेकर आज समाज के कोने-कोने में प्रयास किए जा रहे हैं। पुस्तक में संकलित उनके पहले शोध लेख ‘हरियाणवीं गीतों में कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध सामाजिक चेतना’ में ही उन्होंने समाज के तथाकथित ठेकेदारों की पोल खोली है। आज़ादी के आंदोलन में जिस प्रकार देश के जागरूक नागरिकों, कवियों, लेखकों और आम जनता ने एक जुट होकर अपनी शक्ति का परिचय दिया था, उसी प्रकार वर्णित लेख में भी इन्होंने उल्लेख किया है कि हरियाणा प्रदेश के गीतकार और कलमकार कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध रण में उतरे हैं। दूसरे शोध लेख ‘भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों में नारी की स्थिति: एक अवलोकन’ में इन्होंने नारी को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में चित्रित किया है। भले ही नारी पहले अबला का लबादा ओढ़े हुए थी, लेकिन आज प्रत्येक क्षेत्र में नारी अपनी सफलता का परचम लहरा कर अपनी शक्ति का परिचय देते हुए अपने आपको सबला सिद्ध कर चुकी है। ‘घरेलू हिंसा: कारण और समाधान’ में लेखक ने आपसी कलह-क्लेश का पटापेक्ष किया है और औरत पर ज़ुल्म की इंतहा का विवरण भी प्रस्तुत किया है। इसके साथ-साथ इसका कारण और समाधान भी सटीक एवं उपयुक्त रूप में दिया है। ‘रेडियो पत्रकारिता: चुनौतियां और सम्भावनाएं’ में इन्होंने आकाशवाणी में व्याप्त अनियमितताओं की और संकेत करते हुए समस्या का समाधान सुझाया है। ‘भाषा, सभ्यता, संस्कृति और साहित्य के बदलाव में इलैक्ट्राॅनिक मीडिया की भूमिका’ में भाषाए सभ्यता, संस्कृति और साहित्य के स्वरूप को बचाने के संदर्भ में संचार माध्यमों के लिए निर्धारित आचार संहिता का पालन किए जाने की बात पर बल दिया है। ‘भाषा और साहित्य पर मीडिया का प्रभाव’ में इन्होंने मीडिया द्वारा अपनी मन-मर्ज़ी से गढ़ी जा रही व्यवहार-भाषा को सोदाहरण स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘‘मीडिया आज की भाषा को स्वर देने में सक्षम है, किन्तु जब यही तुतला कर बोलने लगे या पड़ोसी की नकल उतारने लगे, तो इससे भाषा पर सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद कैसे की जा सकती है।’’ इसका समाधान सुझाते हुए इन्होंने कहा है कि ‘‘जिस तरह से यांत्रिकी में खराब कल-पुर्जों को तुरंत बदले जाने की आवश्यकता रहती है, उसी तरह से मीडिया के सिद्धान्तों और कार्य प्रणाली में मन-मर्ज़ी का परिचय देकर भाषा और साहित्य को विकृत करने वाले अधिकारियों को भी तुरंत बदल देना चाहिए।’’ इसी तरह से बाकी लेख भी अपने-अपने शीर्षक के अनुरूप विषय-वस्तु के तहत सार्थक संदेश देने वाले हैं। मुद्रण में अशुद्धियां बहुत कम हैं। लेखक के रंगीन चित्र युक्त आवरण सामान्य होते हुए भी काफी आकर्षक एवं प्रभावशाली है। सभी शोध-पत्र लेखक की शोधपरक दृष्टि का परिचय देने के साथ-साथ विविध विषयों पर वैचारिक अभिव्यक्ति के अध्ययन की दृष्टि से उपयोगी एवं सहेज कर रखने लायक हैं। कुल मिलाकर लेखक अपने इस प्रयास के लिए साधुवाद का पात्र है।