Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Apr 2024 · 2 min read

शोकहर छंद विधान (शुभांगी)

शोकहर छंद ( शुभांगी छंद) विधान सउदाहरण
30 मात्राओं का “#समपद” मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों पद समतुकांत या दो दो पद तुकांत किए जाते है |
छंद मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + अठकल + अठकल + छक्कल
2222, 2222, 2222, 222 (S)
8+8+8+6 = 30 मात्रा।
प्रत्येक पद के दूसरे चौथे और छठे चौकल में लगाल ( जगण) नही होना चाहिए
चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।
जगण वर्जित है
प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक व उत्तम है व तीनों यति की समतुकांतता सर्वोत्तम है।
अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।

नानी आती , घर महकाती , लड्डू लाती , फल केला |
कहती प्यारा , मेरा तारा , राज दुलारा , अलबेला ||
मन को खोले , दृग से तोले , सबसे बोले , यह नाती |
मेरे मन में , इस जीवन में , इन आँखन में , है बाती ||

मेरी नानी , बोल कहानी , बहुत पुरानी , जो भाए |
करती ताजा , रानी राजा, गाना बाजा , भी गाए ||
हम सब बच्चे , जितने कच्चे , बनते सच्चे ,पा नानी |
वह भी हँसती,सबसे कहती ,अच्छी लगती , नादानी ||
~~`~~`

कविता लिखते , कभी न चिढ़ते, पाठक मिलते , है उसको |
कवि कहलाता , सुंदर गाता , है वह पाता , शुभ रस को ||
पर जो भटके , मग में अटके, खाता झटके , सविता‌ में |
तब भरमाए , ठोकर खाए , भाव न आए , कविता में ||

पथ पहचाना , चलते जाना , फल भी पाना ,‌‌‌ होता है |
करने पालन , बीज सुहावन , अपने आँगन , बोता है ||
तृृष्णा करते , हठ में रहते , तब वह सहते , घातों को |
उनके गानें , देख पुराने , जगत न मानें , बातों को ||
~~~~`

हे दीवानो , वीर जवानो , और किसानो , आ जाओ |
रखकर यारी , खेलें पारी , जिम्मेदारी , को लाओ ||
हम सब जानें , इतना मानें, माँ के गानें , चाहत है |
सबसे न्यारा , देश हमारा , लगता प्यारा , भारत है |

प्यारा नाता , दिल भी गाता ,भारत माता , न्यारी है |
मिट्टी पानी , है बलिदानी , सार कहानी , भारी है ||
शुचिता पाले, नूर उजाले , हम रखवाले , दीवाने |
चलते जाते , हाथ उठाते , जनगण गाते , मस्ताने ||

शोकहर छंद (मुक्तक )

करकें बातें , देते घातें , मारें लातें , जब अपने ,
हमको माने ,वह पहचानें , यह अनजानें, हैं सपने ,
चलते जाते, ठोकर खाते , फिर उठ जाते , दुनिया में –
होता खेला , उठता मेला , चले अकेला , थपने |

यहाँ अकेला , आया मेला ,कूदाँ खेला , अब जाना ,
जो कुछ पाया , सब अपनाया , बाँटा खाया , सब खाना ,
आया रोड़ा , तोड़ा मोड़ा , फिर कुछ जोड़ा , दुनिया में –
सब कुछ मेरा , देकर घेरा , बनता शेरा , दीवाना |

©® सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०

Language: Hindi
226 Views

You may also like these posts

* अध्यापक *
* अध्यापक *
surenderpal vaidya
हमारे जैसी दुनिया
हमारे जैसी दुनिया
Sangeeta Beniwal
सर्राफा- हड़ताल वर्ष 2016
सर्राफा- हड़ताल वर्ष 2016
Ravi Prakash
कुछ खास रिश्ते खास समय में परखे जाते है
कुछ खास रिश्ते खास समय में परखे जाते है
Ranjeet kumar patre
वोट डालने जाना है
वोट डालने जाना है
जगदीश शर्मा सहज
"समय के साथ"
Dr. Kishan tandon kranti
मां की ममता
मां की ममता
Shutisha Rajput
क्रोधी सदा भूत में जीता
क्रोधी सदा भूत में जीता
महेश चन्द्र त्रिपाठी
क्या संग मेरे आओगे ?
क्या संग मेरे आओगे ?
Saraswati Bajpai
#आग की लपटें
#आग की लपटें
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
*प्राकृतिक संगीत*
*प्राकृतिक संगीत*
Shashank Mishra
#हौंसले
#हौंसले
पूर्वार्थ
इन्सानियत
इन्सानियत
Bodhisatva kastooriya
फेसबुक वाला प्यार
फेसबुक वाला प्यार
के. के. राजीव
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
Dr. Shakreen Sageer
डमरू वर्ण पिरामिड
डमरू वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
मौज के दोराहे छोड़ गए,
मौज के दोराहे छोड़ गए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
वक्त लगता है
वक्त लगता है
Vandna Thakur
मैं ज़िंदगी के सफर मे बंजारा हो गया हूँ
मैं ज़िंदगी के सफर मे बंजारा हो गया हूँ
Bhupendra Rawat
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
शैतान का मजहब
शैतान का मजहब
राकेश पाठक कठारा
शे
शे
*प्रणय*
2959.*पूर्णिका*
2959.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
थकते नहीं हो क्या
थकते नहीं हो क्या
Suryakant Dwivedi
उठ जाग मेरे मानस
उठ जाग मेरे मानस
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सुख दुख तो मन के उपजाए
सुख दुख तो मन के उपजाए
Sanjay Narayan
मेरे पिता क्या है ?
मेरे पिता क्या है ?
रुपेश कुमार
जो रिश्ते दिल में पला करते हैं
जो रिश्ते दिल में पला करते हैं
शेखर सिंह
विराम चिह्न
विराम चिह्न
Neelam Sharma
बलात्कार जैसे घृणित कार्य की दुर्भावना भारत जैसे देश में हाव
बलात्कार जैसे घृणित कार्य की दुर्भावना भारत जैसे देश में हाव
Rj Anand Prajapati
Loading...