शोकहर छंद विधान (शुभांगी)
शोकहर छंद ( शुभांगी छंद) विधान सउदाहरण
30 मात्राओं का “#समपद” मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों पद समतुकांत या दो दो पद तुकांत किए जाते है |
छंद मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + अठकल + अठकल + छक्कल
2222, 2222, 2222, 222 (S)
8+8+8+6 = 30 मात्रा।
प्रत्येक पद के दूसरे चौथे और छठे चौकल में लगाल ( जगण) नही होना चाहिए
चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।
जगण वर्जित है
प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक व उत्तम है व तीनों यति की समतुकांतता सर्वोत्तम है।
अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।
नानी आती , घर महकाती , लड्डू लाती , फल केला |
कहती प्यारा , मेरा तारा , राज दुलारा , अलबेला ||
मन को खोले , दृग से तोले , सबसे बोले , यह नाती |
मेरे मन में , इस जीवन में , इन आँखन में , है बाती ||
मेरी नानी , बोल कहानी , बहुत पुरानी , जो भाए |
करती ताजा , रानी राजा, गाना बाजा , भी गाए ||
हम सब बच्चे , जितने कच्चे , बनते सच्चे ,पा नानी |
वह भी हँसती,सबसे कहती ,अच्छी लगती , नादानी ||
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कविता लिखते , कभी न चिढ़ते, पाठक मिलते , है उसको |
कवि कहलाता , सुंदर गाता , है वह पाता , शुभ रस को ||
पर जो भटके , मग में अटके, खाता झटके , सविता में |
तब भरमाए , ठोकर खाए , भाव न आए , कविता में ||
पथ पहचाना , चलते जाना , फल भी पाना , होता है |
करने पालन , बीज सुहावन , अपने आँगन , बोता है ||
तृृष्णा करते , हठ में रहते , तब वह सहते , घातों को |
उनके गानें , देख पुराने , जगत न मानें , बातों को ||
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हे दीवानो , वीर जवानो , और किसानो , आ जाओ |
रखकर यारी , खेलें पारी , जिम्मेदारी , को लाओ ||
हम सब जानें , इतना मानें, माँ के गानें , चाहत है |
सबसे न्यारा , देश हमारा , लगता प्यारा , भारत है |
प्यारा नाता , दिल भी गाता ,भारत माता , न्यारी है |
मिट्टी पानी , है बलिदानी , सार कहानी , भारी है ||
शुचिता पाले, नूर उजाले , हम रखवाले , दीवाने |
चलते जाते , हाथ उठाते , जनगण गाते , मस्ताने ||
शोकहर छंद (मुक्तक )
करकें बातें , देते घातें , मारें लातें , जब अपने ,
हमको माने ,वह पहचानें , यह अनजानें, हैं सपने ,
चलते जाते, ठोकर खाते , फिर उठ जाते , दुनिया में –
होता खेला , उठता मेला , चले अकेला , थपने |
यहाँ अकेला , आया मेला ,कूदाँ खेला , अब जाना ,
जो कुछ पाया , सब अपनाया , बाँटा खाया , सब खाना ,
आया रोड़ा , तोड़ा मोड़ा , फिर कुछ जोड़ा , दुनिया में –
सब कुछ मेरा , देकर घेरा , बनता शेरा , दीवाना |
©® सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०