शैतान भी है
मरने को तैयार हूं लेकिन जीने का अरमान भी है
मुझसे पंगा ठीक नहीं है मुझ में इक शैतान भी है
मेरी आंखें पढ़ने वाले फिर से इनको पढ़कर देख
सिर्फ़ नहीं हैं आंसू इनमें , इनमें इक तूफ़ान भी है
जितना मैं जज़्बाती हूं उतना ही मैं फ़ौलादी हूं
जितनी नरम दिली है मुझमें उतनी मुझमें शान भी है
किस शक़ शुब्हा ने आख़िर तुमको ऐसी बेचैनी दी
सर से बोझ उतारो अपने इतना क्या सामान भी है
हम भी देखेंगे अपना अंजाम-ए-मुहब्बत क्या होगा
एक तरफ़ है चाहत तेरी एक तरफ़ ईमान भी है