*बतलाती दीपावली, रहो पंक्ति में एक (कुंडलिया)*
नसीब की चारदीवारी में कैद,
मुश्किल बहुत होता है मन को नियंत्रित करना
!!!! कब होगा फैसला मेरा हक़ में !!!!
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
प्यार की चंद पन्नों की किताब में
"" *एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य* "" ( *वसुधैव कुटुंबकम्* )
कभी अपने ही सपने ख़रीद लेना सौदागर बनके,
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
Kabhi kabhi paristhiti ya aur halat