लुटा दी सब दौलत, पर मुस्कान बाकी है,
टुकड़ों-टुकड़ों में बॅंटी है दोस्ती...
सजना है मुझे सजना के लिये
व्यवहारिक नहीं अब दुनियां व्यावसायिक हो गई है,सम्बंध उनसे ही
मुझको आँखों में बसाने वाले
बिन पैसों नहीं कुछ भी, यहाँ कद्र इंसान की
आप हाथो के लकीरों पर यकीन मत करना,
संत गुरु नानक देवजी का हिंदी साहित्य में योगदान
विचार, संस्कार और रस [ एक ]
बुराई कर मगर सुन हार होती है अदावत की
अगहन कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के
साहब का कुत्ता (हास्य-व्यंग्य कहानी)
यदि केवल बातों से वास्ता होता तो
सत्य
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'