“शेष”
अतृप्ति, असन्तोष, उत्कंठा
और अनन्त तलाश….
तलाश किसकी?
नहीं ज्ञात
अनवरत अज्ञात तलाश…।
हर्ष,समृद्धि, प्रेम सब प्राप्य
समस्त संवेगों से परिपूर्ण हृदय
और प्रकृति के समस्त ऋणों से
उऋण देह…।
पुष्प पल्लवित उपवन
और मिश्री -सी मीठी तोतली वाणी
प्रेम – घन से भीगता आँगन
आदर्श माँ और गृहिणी के
तमगों से सम्मानित
और इस तेज से दमकता मुखमण्डल…!
किन्तु,
तृप्ति मे यह कैसी अतृप्ति…?
उल्लास मे यह विषाद कैसा.. ?
और सन्तुष्टि मे प्रतीक्षा कैसी?
क्या है,
जो अभी पाना है शेष…?
©निकीपुष्कर