**** शेर ******
23.1.17 रात्रि 10.5
बागे बुलबुल को अब मुस्कुराना ही होगा
तुमसे मिलना अब रोज़ाना ही होगा।।
अब बरखा हो कैसे बिन बादल
आँखों से आंसुओ को बहाना ही होगा
जोर आजमाइश ना करो इश्क में यारों
अब गले पड़े इश्क को निभाना ही होगा
एक बार जान हथेली पर रखले अपनी
एक दिन इस जहां से जाना ही होगा
खैर कोई बात नही जहां से जाने की
एक दिल लौटकर जहां में आना ही होगा
ग़म अगर लाख रोके राहें तेरी
ग़म को रास्ते से हटाना ही होगा
उफ़ ये प्राब्लम है अब बहुत भारी
रास्ते से काँटों को हटाना ही होगा
बहाने तो तुम भी बहुत अच्छे बनाते हो
एक दिन फिर भी जहां से जाना ही होगा
बर्फ बनकर जिंदगी अब जम गयी है
देख अब सूरज बन तुझको आना ही होगा
ग़जब है यारा दोस्ताना तेरा
रिश्ता अब निभाना ही होगा
प्यार में अब ख़ुदा बन गये हो तुम मेरे
एक दिन इस इंसां के दिल में आना ही होगा
जुल्म ना कर इन नशीली आँखों से
एक दिन आँख का पानी गिराना ही होगा
जमाना आज जो मुझको इतना सताता है
कल जमाने को पीछे मेरे आना ही होगा
बात आपने जो इतनी गहरी कह दी है
अब किसी भी तरह इसको पचाना ही होगा
ना कर साद ग़म से जिंदगी अपनी
ग़म-ए-उल्फत को निभाना ही होगा।।
? मधुप बैरागी
?मधुप बैरागी