शेर
ना वो गुफ़्तगू, ना ही ज़ुस्तजू
रिश्तों में फासलें इतनी क्यों?
बेकार की उलझनों में हर कोई
अपनेपन की एहमियत ना क्यूँ?
शायर-किशन कारीगर
(नोट-कॉपीराइट@)
ना वो गुफ़्तगू, ना ही ज़ुस्तजू
रिश्तों में फासलें इतनी क्यों?
बेकार की उलझनों में हर कोई
अपनेपन की एहमियत ना क्यूँ?
शायर-किशन कारीगर
(नोट-कॉपीराइट@)