शे’र इतने ही ध्यान से निकले
शे’र इतने ही ध्यान से निकले
तीर जैसे कमान से निकले
भूल जाये शिकार भी ख़ुद को
यूँ शिकारी मचान से निकले
था बुलन्दी का वो नशा तौबा
जब गिरे आस्मान से निकले
हूँ मैं कतरा, मिरा वजूद कहाँ
क्यों समन्दर गुमान से निकले
देखकर फ़ख्र हो ज़माने को
यूँ ‘महावीर’ शान से निकले