शृंगेरी के सघन वन (कविता)
|| जय माँ शारदे ||
” शृंगेरी के सघन वन ”
शृंगेरी के सघन वन मन को बहुत लुभाते हैं,
जीवन को जीने का एक नया अन्दाज़ सिखाते हैं,
पावन इस तन को कर मन में बस जाते हैं,
मन हो आह्लादित जीवनभर, जब संग यहाँ का पाते हैं,
शृंगेरी के सघन वन मन को बहुत लुभाते हैं ||१||
तुंगा के वामतीर बसा शृंगेरी बड़ा प्यारा है,
आदिगुरु के चरणरज से ये गाँव बड़ा ही न्यारा है,
तुंगा की अविरल लहरें हर दिलों को लहराते हैं,
देवभूमि से हैं हम आये, गुण गान यहाँ का गाते हैं,
शृंगेरी के सघन वन मन को बहुत लुभाते हैं ||२||
दूर-दूर से छात्र जो आते, यहाँ प्यार वो पाते हैं,
पाकर मुकाम वो यहाँ से राष्ट्र सेवा में जाते हैं,
श्रम किसी का व्यर्थ न जाये ऐसा माहौल बनाते हैं,
गुरु चरणों में नित्य बैठकर उद्धार स्वयं का रचाते हैं,
शृंगेरी के सघन वन मन को बहुत लुभाते हैं ||३||
प्रकृति का सौन्दर्य यहाँ प्राणों से बढ़कर प्यारा है,
वेश भूषा है दिव्य यहाँ की संस्कृति को सँवारा है,
हर प्रान्त से आये मित्र यहाँ अपनी बोली कहते हैं,
पर संस्कृत की ये माटी ऐसी भाषा संस्कृत कहते हैं,
शृंगेरी के सघन वन मन को बहुत लुभाते हैं ||४||
ज्ञान प्रदात्री माँ शारदे! सदा आशीष बनाये रखना,
हर रुकावट को माँ तुम अध्ययन से मेरे दूर ही करना,
सत्पथ पर जाये ये अग्निपथ ऐसे सन्मार्ग दिखाते हैं,
त्रिनेत्र वाले भोले शंकर इस बगिया को सिंचित बनाते हैं,
सच कहता हूँ, शृंगेरी के सघन वन मन को बहुत लुभाते हैं ||५||
अशोक डंगवाल
राजीव गांधी परिसर, शृंगेरी (कर्नाटक)
( उत्तराखण्ड वाले)