शूल, अलक , लाल
दोहे
शूल, अलक, लाल
यौवन छलका जा रहा, हिरनी जैसी चाल।
मादकता बरसा रही, मुख पर अलकें जाल।।
सरपट भागी जा रही, भू पर उड़ती धूल।
हाथ कमर में गागरी ,पगतल चुभता शूल।।
सही न जाए वेदना, बिखरे काले बाल।
इक दैया की आह में, नैन हो गए लाल।।
सूरत अति मन मोहिनी, अलकें घटा घनघोर।
चितवन प्यासा प्रीति का, करे न कोई शोर।।
मोह रही गजगामिनी, चंचल सुंदर नार।
चमके मुख ज्यूं दामिनी, सतरंगी शिंगार।।
उजली देह प्रकाशिनी, कजले नैन कटार।
बहती राका ज्योत्सना,अधर बहे मधु धार।।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश