शून्य से शतक
कभी कभी
ऐसा महसूस होता है कि
मैं शून्य हूं और
नीचे की तरफ लुढ़कती हुई
गर्त में
जा रही हूं
इस समय
इस मुश्किल राह में
मैं नितांत अकेली होती हूं
मैं गिर रही होती हूं लेकिन
मुझे ऊपर उठाने वाली भी
मैं खुद ही होती हूं
उस कठिन घड़ी में
मैं शून्य को
रात के अंधेरे में
आसमान में चमकता चांद
समझ लेती हूं
खुद एक टूटता सा टिमटिमाता सितारा
बन जाती हूं
कभी कुदरत का ही कोई
हसीन नजारा बन जाती हूं
कभी आसमान के जहां में
राज करती कोई
हीरे जवाहरात का बेशकीमती
ताज पहने बैठी
सोने के सिंहासन पर विराजमान
कोई रानी महारानी बन जाती हूं
यह मेरी सकारात्मक सोच ही है जो
मुझे फिर शून्य से ऊपर
उठाकर
शीर्ष स्थान पर वापिस
पहुंचा देती है और
मैं उच्चतम स्थान पर
खुद को स्थापित कर
एक खुद को पूर्णता की अवस्था को प्राप्त करता
एक शतक सा ही
महसूस करती हूं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001