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1 Jan 2023 · 1 min read

शून्य से शतक

कभी कभी
ऐसा महसूस होता है कि
मैं शून्य हूं और
नीचे की तरफ लुढ़कती हुई
गर्त में
जा रही हूं
इस समय
इस मुश्किल राह में
मैं नितांत अकेली होती हूं
मैं गिर रही होती हूं लेकिन
मुझे ऊपर उठाने वाली भी
मैं खुद ही होती हूं
उस कठिन घड़ी में
मैं शून्य को
रात के अंधेरे में
आसमान में चमकता चांद
समझ लेती हूं
खुद एक टूटता सा टिमटिमाता सितारा
बन जाती हूं
कभी कुदरत का ही कोई
हसीन नजारा बन जाती हूं
कभी आसमान के जहां में
राज करती कोई
हीरे जवाहरात का बेशकीमती
ताज पहने बैठी
सोने के सिंहासन पर विराजमान
कोई रानी महारानी बन जाती हूं
यह मेरी सकारात्मक सोच ही है जो
मुझे फिर शून्य से ऊपर
उठाकर
शीर्ष स्थान पर वापिस
पहुंचा देती है और
मैं उच्चतम स्थान पर
खुद को स्थापित कर
एक खुद को पूर्णता की अवस्था को प्राप्त करता
एक शतक सा ही
महसूस करती हूं।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 276 Views
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