शुरूआत।
बीत गए हैं दिन कितने,
और बीत गई है कितनी रात,
मैं था चुप तो बातों की,
आप ही कर लेते शुरूआत,
एक पहल से ही जुड़ जाते हैं सिरे,
ज़रूरी नहीं हर रोज़ मुलाकात,
वैसे ही ज़िंदगी छोटी है बहुत,
कि मुअ’य्यन कहां है किसी का साथ,
माना कि एक अरसे से मैंने,
लिया नहीं है आपका नाम,
जवाब तो मेरा हर हाल में मिलता,
जो आप ही भेज देते कोई पैग़ाम,
यही एक सवाल ज़हन में मेरे,
अक्सर जाता है मचल,
जो कर ना सका मैं “अंबर” तो,
आप ही कर लेते कभी कोई पहल।
कवि-अंबर श्रीवास्तव।
मुअ’य्यन- निश्चित