शुरुआत
शुरुआत मैं करूं या तुम,
फर्क नहीं पड़ता।
बस बातें होनी चाहिए।
क्योंकि बातें दबी रहेंगी
तो तंग करेंगी।
बेचैनी घबराहट
और ना जाने क्या-क्या?
झेलना पड़ेगा
तुम्हें और मुझे।
एक अफसोस भी होगा
कि बातें हो नहीं पाई।
बहाने बहुत थे,
बातें हो सकती थीं।
पहले तुम पहले तुम
यही तो झमेला था।
तब वक़्त भी था
और दिल भी अकेला था।
विजय महाजन प्रेमी
वृन्दावन