शुभ सवेरा
कल कल सुर में गाती नदिया
सुबह सुबह इतराती है
गुंजन करती चिड़िया देखो
नभ में जा इठलाती है ।
पाती तरुओं पर लहराकर
मानों ताल लगाती है
देख धरा पर किरण सुनहरी
माटी भी मुस्काती है ।
सुखद सुहाना रूप भोर का
पहन दिवा सज जाती है
ठहर न पाती अब नयनों में
निंदिया मुँह छिपाती है ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)