शुभ-रात्रि कविता
प्रिये तीव्र निद्रा से बाधित,
थके हुए अलसित नयनों में,
मधुर-मनोहर रूप सजाए,
स्वप्नों में उन्माद लिए,
मैं तुमसे मिलने आऊँगा,
मैं तुमसे मिलने आऊँगा।
अस्तु केवल स्वप्न-धरा है,
जहाँ तुम्हारा हमसे मिलना,
चाहे वह आभासित ही हो,
सम्भव है, इसलिए प्रिये-
मैं निद्रा-मग्न हो जाऊँगा,
मैं तुमसे मिलने आऊँगा।
जहाँ दुसह दुनिया के आतप,
निर्मल जल बन अंतर्मन को,
धोकर पावन कर देते है,
वहाँ तुम्हारे मुक्त मिलन को,
स्वप्न-सेज पर बिछ जाऊँगा,
मैं तुमसे मिलने आऊँगा ।
मोहित मुक्त