शुभप्रभातम् नमन
सुप्रभातम् नमन शुभप्रभातम् नमन
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उन्हें मुक्त लिखने की आदत पडी है
मुझे मुक्त लिखना फ़साना लगे
कभी काव्य के सार सारिता को देखो
शब्दों में अनुपम तराना लगे l
उन्हें भी नमन जो लिखे शब्द चाहत
प्रयोजन में अविरल नदी धार जैसी
यही काव्य का सुलभ सार मित्रों
सुप्रभातम् नमन शुभप्रभातम् नमन
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी