शुक्रिया
मैं शुक्रगुज़ार हूँ हर उस निगाह की,
जिसने जिंदगी में दिलासा दिया, भरोसा दिया,
उन सारी हथेलियों का बहुत बहुत शुक्रिया जिन्होंने,
आंधियों में चराग़ बुझने ना दिया,
मैं तहे दिल से कर्ज़दार हूँ -और क़यामत तक रहूंगी,
उनकी, जिन्होंने -उगली पकड़ कर चलना सिखाया,
फ़र्ज़ के रास्तों पर आगे बढ़ाया,
उस आंचल की ठंडी -ठंडी छांव गर ना होती,
सफ़र की तपिश कब की झुलसा चुकी होती,
उन बाज़ुओं का एहसान कैसे उतारूं, जो गर ना संभालतीं,
कई मौकों पर जिंदगी लड़खड़ा जाती,
उन भोली मुस्कानों और मिसरी सी बातों का,
बहुत- बहुत शुक्रिया जिनसे,
ज़िंदगी को मिठास मिली, उलझनों में रूह को सुकून सा मिला,
और क्या- क्या बताऊं, क्या -क्या मिला,
जीने का ख़ूबसूरत मक़सद मिला।