शीश झुकाएं
गीतिका
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अविरल संघर्षों का फल है, हुई विजय अभिराम।
नैसर्गिकता प्राप्त कर सका, भव्य अयोध्याधाम।
बाधाओं में रुके नहीं जन, सहे अनेकों कष्ट।
अंत समय तक संकल्पों की, ध्वजा रखी जब थाम।
नित्य खड़ी हो जाती जब भी, शक्ति धर्म के साथ।
एक दिशा में बढे कदम जब, सुखद मिले परिणाम।
सिखलाया प्रभु राम ने यही, रुकते कभी न धीर।
अभी परीक्षा शेष रही है, रखें भाव निष्काम।
लिखा न दिखता दीवारों पर, कहें उन्हें क्या शब्द।
तनिक उन्हें सद्बुद्धि देंगे, जन के प्रभु श्री राम।
अखिल विश्व में ध्वज लहराया, अटल सनातन सत्य।
अविरल बस बढ़ना है सबको, बिना किए विश्राम।
जाग उठेंगे रामभक्त सब, बहुत कार्य है शेष।
शीश झुकाएं प्रभु चरणों में, लेकर प्रभु का नाम।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०५/०६/२०२४