शील, बुद्धि, मेधा, प्रज्ञा, विवेक,
शील:-
शील शब्द छोटा जरूर है किंतु इसका अर्थ बहुत विस्तृत है। शील का अर्थ होता है आदर्शवादिता या पवित्रता और अपवित्रता या सामान्यता के बीच जो सीमा रेखा होती है उसे ही शील कहते है। अगर सामान्य भाषा मे समझा जाए तो जिसप्रकार कोई नया सामान किसी डब्बे में पैक करके शील कर दिया जाता है , जिसका सीधा अर्थ होता है बिना प्रयोग और दुरुप्रयोग की वस्तु डब्बे के अंदर है और हम उस पर कहीं ज्यादा विस्वास करते है किसी बिना शील किए हुई डब्बे से प्राप्त वस्तु के सापेक्ष। किंतु सामान्य जीवन मे शील का अर्थ केवल प्रयोग है दुरुप्रयोग नही । शील की सीमारेखा इतनी नाजुक होती है कि एकबार टूटने पर पुनः नही बनती। जैसे जीभ का प्रयोग खाना खाने और बात करने के लिए होता है। अगर जीव का प्रयोग आप खाने से ज्यादा स्वाद लेने और लोगों को गाली-गलौज करने या झूठ बोलने के लिए करेंगे तो शील भंग होगा। इसी प्रकार विवेक का प्रयोग दूसरों को ठगने के लिए होगा तो शील भंग होगा, और शरीर का प्रयोग यदि दूसरों को डराने और मारने-पीटने के लिए होगा तो शील भंग होगा..!
इसी शील में स्त्री शील भी आता है और पुरूष शील भी..! किन्तु समाज की पुरुषवादी मानसिकता के कारण स्त्री शील पर हो हल्ला मचता रहता है और पुरुष शील को नजर अंदाज कर दिया जाता है। एक पतिव्रता नारी और एक पत्नि व्रता पुरुष भी शील के दायरे में ही आते है।
हिंसा,चोरी,मद्द रस रहे निरत व्यभिचार।
ये ही काया मैल है काया शील सुधार..!!
बुद्धि:-
सामान्यतः भौतिक और अभौतिक वस्तुओं का ज्ञान ही बुद्धि है। बुद्धि पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी में पायी जाती है फिर वह चाहे मनुष्य हो पक्षी हो जानवर या फिर कोई भी और जीव। बुद्धि वास्तव में ज्ञान का पर्याय है। पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को अपने हिसाब से ज्ञान होता है। शेर को ज्ञान है कि उसे हिरन का शिकार करना है और हाथी को ज्ञान है कि उसे केबल घास ही खानी है ना कि मीट। शेर हरी भरी घास होते हुए भी बिना शिकार के भूखा मर जाता है और हाथी हिरनों के झुंड में होते हुए भी घास के लिए इधर-उधर घूमता है। यही है ज्ञान जो सभी को प्रकृति से प्राप्त होता है। गधे में भी बुद्धि होती है तभी वह घास चर कर अपने मालिक के पास पहुँच जाता है और मालिक के बताए रास्ते पर चलकर खुद ही अकेला सामान ढोता रहता है।
बुद्धि किसी पागल व्यक्ति में या नवजात शिशु में नही होती।, क्योकि उसे ज्ञान ही नही होता कि वह क्या कर रहा है। वह केबल इंद्रियों से ही परिचालित होता है और कभी कभी उनसे भी परिचालित नही हो पाता। तभी पागल व्यक्ति शर्दियों में भी नंगे घूमते हुए मिल जाते है और गर्मियों में तपती सड़क पर सोते हुए..!
मेधा:-
बुद्धि का जो परिष्कृत रूप होता है उसे मेधा कहते है। एक प्रकार से बुद्धि का उच्चतम स्तर ही मेधा है। अर्थात एक किसान में बुद्धि तो है किंतु मेधावी नही है क्योकि वह पारंपरिक ज्ञान से ही खेती करता रहता है जो किसान कृषि क्षेत्र में शिक्षा हासिल कर वर्तमान तकनीकी के अनुसार खेती करता है वह मेधावी होता है।
मेधावी वास्तव में एक समानों में विशिष्ट होता है। जरूरी नही है कि कोई व्यक्ति हर क्षेत्र में मेधावी हो बल्कि व्यक्ति अपने अपने रुचि के क्षेत्र में भी मेधावी होते है। जैसे डॉक्टर बहुत होते है किंतु कोई कोई एक डॉक्टर ही मरीजों का विस्वास जीत पाता है। नेता बहुत होते है किंतु कोई एक ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनता है।
इसलिए जो एक समानों में विशिष्ठ होता है वही मेधावी होता है।
प्रज्ञा:-
प्रज्ञा वास्तव में एक प्रकार की मेधा ही है किंतु यह आध्यात्मिक क्षेत्र की मेधा है। अतः आध्यात्मिक क्षेत्र की मेधा को प्रज्ञा कहते है। जैसे भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, मोहम्मद पैगम्बर, ईसा मसीह, और सनातन धर्म के तमाम ऋषि जैसे अगस्त्य,पुलस्त्य,वशिष्ठ,विस्वामित्र,जमदग्नि, बृहस्पति,शुक्राचार्य इत्यादि। ये सब आध्यात्मिक क्षेत्र के प्रज्ञावान व्यक्ति थे।
विवेक:-
विवेक तर्क बुद्धि को कहते है। विवेक होने के लिए जरूरी नही है कि व्यक्ति को उच्चतम ज्ञान हो अर्थात व्यक्ति मेधावी हो बल्कि समान्य बुद्धि का व्यक्ति भी सामाजिक रूप से विवेकशील हो सकता है। समाज मे व्यक्ति का विवेकशील होना अति महत्वपूर्ण है क्योकि विवेक ही व्यक्ति को सही और गलत का अंतर बताता है। व्यक्ति को उसका उद्देश्य बताता है और उस तक पहुचाने का मार्ग भी सुझाता है। जैसे शिक्षित व्यक्ति सभी को गाली देकर और अपना अहम दिखाकर अपना काम बिगाड़ लेता है वहीं अनपढ़ व्यक्ति प्यार से बोलकर अपना काम निकाल लेता है…!!!
जैसे कबीर दास मेधावी नही बल्कि शीलवान, प्रज्ञावान और विवेकशील थे।