#शीर्षक- 55 वर्ष, बचपन का पंखा
55 वर्ष का होने पर
बचपन याद आता है,
दादी, नानी, का घर
पर जाना याद आता है।।
क्या जमाना था वह
आज सवाल उठा दिया जाता है,
खुली छत पर सोना
हाथों से देसी पंखा घुमाया जाता है।।
बचपन व 55 मे समय का
हमको खेल दिखाया जाता हैं,
दादी, नानी की कहानी में
हमको संस्कार सिखाया जाता है।।
चाँद को मामा, तारों को
तब जादु से छुपाया जाता है,
हाथों से देसी पंखा गुमा कर,
हम सब को खूब हँसाया जाता है।।
55 और बचपन के बिच मे
अब हमको इतना घुमाया जाता है।
हाथों का पंखा छोड़ कर,
बिजली का पंखा चालू हो जाता है।।
स्वरचित और मौलिकअनिल चौबिसा
चित्तौड़गढ़ (राज.)
9829246588