शीर्षक -शीतल छाँव होती माँ !
मातृ दिवस पर
शीर्षक -शीतल छाँव होती माँ
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दुपहरी की तपती धूप में,
शीतल छांँव होती है मांँ।
अंँधियारी सी रातों की,
दिव्य रोशनी होती है मांँ।
कभी भटक जाता जब मन,
तो पतवार बन जाती है मांँ।
जीवन की डगमग नैया की,
खेवनहार बन जाती है मांँ!
जरा सी देर होने पर मेरे,
परेशान हो जाती है मांँ।
पलकें झपकाए बिना ही,
मेरा पथ निहारती है मांँ!
मेरे आने के इंतजार में,
रातों को जागती है मांँ।
मुझको सुलाने के लिए,
लोरियांँ भी सुनाती है मांँ!
थपकियांँ देकर मेरे जब ,
बालों को सहलाती है मांँ।
मैं चैन से सो जाती हूंँ जब,
आँचल में जब सुलाती है माँ!
उसका प्रेम निःस्वार्थ होता,
बच्चों पर कुर्बान होती है मांँ।
कोई शब्द नहीं उसके लिए,
बच्चों का संसार होती है मांँ!
माँ केवल एक शब्द नहीं,
इसमें पूरा ब्रह्मांड समाया है।
माँ से ही जीवन में खुशियांँ,
मांँ! ने ही पथ में चलना सिखाया है!
माँ !से बढ़कर कोई नहीं दुनिया में,
जिसका कोई ऋण चुका नहीं पाया।
माँ! बच्चों पर वात्सल्य,प्रेम लुटाती,
माँ!के चरणों में ही स्वर्ग को पाया!!
सभी माताओं को मातृ दिवस
की बधाई एवं बहुत बहुत
शुभकामनाएंँ?
मांँ तुझे सलाम!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर