शीर्षक – वेदना फूलों की
खूबसूरत फूलों के बाग में
एक दिन एक माली आया
रोज़ की तरह आया
इस बार उसने एक
नन्हें फूल को तोड़ना चाहा
नन्हें फूल ने कहा रुको……
अभी मुझे मत तोड़ो
मुझे सही से खिलने तो दो
मैं फूल हूं तो क्या
मुझे आज़ादी नहीं खिलने की क्या
मुझे कहां जाना होगा
यह निर्णय मेरा नहीं क्या
माली ने हंसते हुए कहा ……
तुम फूल हो सुगंध बिखेर सकते हो
दूसरों को सुशोभित कर सकते हो
इसके अलावा तुम्हें कोई कार्य नहीं है
यह सोचना व्यर्थ है कि…….
तो फूल ने कहा……. अगर ऐसा है तो
क्या फूल बनना मेरा अभिशाप नहीं
माली ने फिर कहा…..
प्रकृति का सुंदर वरदान हो तुम
मनुष्य की आंखों में समाए हो तुम
फूल ने फिर कहा ……
लेकिन मेरी आज़ादी तो तुम्हारे हाथों में है
तुम मुझे देवताओं को अर्पित करो
या किसी दुष्ट के गले का हार बनाओ
या वीर शहीदों के शवों पर मेरी शोभा बढ़ाओ
या किसी स्त्री के बालों में गूंथा जाऊं
माली ने फिर कहा कि…………
तुम फूल हो तुम्हारा कर्तव्य ही है महकना
तुम्हारी नियति ही है दूसरों को भाना
क्योंकी फूलों को सभी प्रेम करते हैं
और प्रेम की बेदी पर कुचलते हैं
यहीं भावना सब में होती है
अगर कोई तुमसे सच्चा प्रेम करता तो
तुम्हें अपने पैरों तले न रौंदता
ऐसा कृत्य करते हुए जहां उसे अहसास भी नहीं होता है
ख़ुद को सजाने हेतु तुम्हें न तोड़ता
वो तुम्हें तुम्हारे हाल में छोड़ता
तब ये सारी प्रकृति कितनी सुंदर होती
लेकिन तुम्हें तोड़कर उसने
तुम्हारे साथ साथ दूसरों को भी
अभिशाप दिया है
तुम ख़ुद टूटकर गिरते तो
बेजान गालियां भी खिल उठतीं
तुम्हारी चमक से दुनियां चमक उठती
तुम्हारी महक से दुनियां महक उठती
तुम्हारी सुंदरता से दुनियां
रंग बिरंगी और सुंदर होती
लेकिन स्वार्थ किसी का भी हो
सम्मान नहीं देता है
और लाभ तो दूर की बात है
कुछ क्षण के लिए खुशियां मिल सकती हैं तुम्हें तोड़कर
लेकिन तुम्हारे जीवित रहते सभी को खुशियां ही मिलती
प्रकृति सुशोभित और सुंदर रहती
तुम्हारे जीवित रहने से यह प्रकृति भी जीवित रहती
_ सोनम पुनीत दुबे