शीर्षक: “ये रीत निभानी है”
हिन्दी काव्य रचना संख्या: 238.
शीर्षक: “ये रीत निभानी है”
अप्रकाशित पुस्तक: “मेरी परछाई”
(रविवार, 28 अक्तूबर 2007)
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जगमग दीप जिलाओ
पर्व की रस्म निभानी है।
रीत है ये बड़ी अनोखी
ये रीत निभानी है ।।
गलियों में
छत पर
घर के आँगन में
फिर धूम मुचानी है।
उमंग नई है,
जोश नया है
ये रीत पुरानी है।
रीत है ये बड़ी अनोखी,
ये रीत निभानी है ।।
पुण्य-पावन पर्व पर
कैसा
पुलकित मन हर्षाए
अंबर में चमके
बहुरंगे सितारे
धरा से महक ये सौंधी आए ।
सौंधी-सौंधी महक हृदय में
सबके रम जानी है।
रोत है ये बड़ी अनोखी
ये रीत निभानी है ।।
– सुनील सैनी “सीना”,
राम नगर, रोहतक रोड, जीन्द (हरियाणा)-१२६१०२.