शीर्षक -ये बरसात
शीर्षक -ये बरसात
है अँधेरी काली रात,
मन पर भारी ये बरसात।
भीगे लफ्ज़ भीगी बात,
अश्क़ में डूबी ये सौगात।।
सिहर-सिहर से जाता क्यों है,
बावला सा मन जाने क्या सोच।
फलसफों की रीति यही है,
हरपल मन को रहती नोच।।
रहते हैं हर लफ़्ज़ अधूरे,
रहती सारी प्यास अधूरी।
शबनम से इक कतरा भी न,
रेगिस्तान में हो न पूरी।।
कहीं भटकता मन जा पहुँचे,
स्वप्न भरी नगरी में देखो।
आधे-अधूरे वहाँ भी रहते,
कितना भी जतन कर देखो।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )