“शीर्षक-“मेला”(9)
बच्चों संग बच्चे बन जाते,
और वे सदा ही बच्चों के मन को भाते,
मेरे लिए लड़ते सबसे,
सपने जो मेरे पूरे करते,
डांट तो मुझको लगाती मम्मी,
पर लाड़ लड़ाते मुझको तो पापा,
नौकरी से लौटर शाम को
पापा घर को आते,
खेल-खिलौने उपहार में लाते,
देखने मेला सबमिल जो जाते,
कंधे पर बिठाकर मुझे खूब घुमाते,
मेले में सदा झुला झुलाते,
लिट्टी-चोखा शौक से खाते-खिलाते,
बेटा-बेटी में कभी फर्क न करते,
एक जैसा प्यार ही सबसे करते,
रात को हमें अपनी गोद में सुलाते,
ज़िंदगी की असलियत के कहानी-किस्से
हमें सुनाते,
वो बने मेरे आदर्श “सबसे अच्छे पापा”
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल