शीर्षक-मिलती है जिन्दगी में मुहब्बत कभी-कभी
शीर्षक-मिलती है जिन्दगी में मुहब्बत कभी-कभी
स्थाई- मिलती न हर किसी को सौहरत कभी-कभी। बनता अनौखा ऐसा मुहूर्त कभी-कभी।।अं•-मन से मिलें न मन,कैसे सुमन खिलें कैसे सुमन खिलें—उड़ान-ठौकर लगे समलतें हैं जग वालें कभी-कभी।।मिलती न हर किसी को सौहरत कभी-कभी——–अं•-न भाये समझ आये, जीवन की राहों में जीवन की राहों में——उड़ान-नैन सुक तुम्हें बताये, रस्ता कभी-कभी मिलती न हर किसी को सौहरत कभी-कभी—-अं•-जल जायेगा ये जीवन, पीने को जलन हो।।२पीने को जल न हो—–उड़ान-परमार्थी जग में प्रकट होता है कभी-कभी। मिलती–
अं•-रटना अगर रटे तो, रट लेना राम की।।२रट लेना राम की—–उड़ान-जीवन सुधारना हो,भज लेना कभी-कभी।।मिलती न-अं•-जग जाये अंतर्मन में, ह्रदय के राम जी। ह्रदय के राम जी——उड़ान-मिलती है राम भक्ति सबरी-सी कभी-
कभी।।मिलती न हर किसी को सौहरत कभी-कभी-बनता अनौखा ऐसा मुहूर्त कभी-कभी।।
स्वरचित एवं मौलिक
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी उत्तर प्रदेश