शीर्षक-“बाल-दिवस पर कीमती सीख”(17)
“ओ अजनबी! इस बार मन ने चाहा!बाल-दिवस पर बच्चों को ही गुरू बनाएं,उनसे भी जिंदगी में महत्वपूर्ण सीखें मिलतीं हैं कई बार,जिसे हम हर बार नज़र अंदाज़ कर देते हैं”
हां तो अजनबी!बच्चों से सीखने को बहुत है,शायद आपको पूरा बता भी न पाऊं,पर कोशिश करती हूँ
गिरकर फिर से खड़े होना,स्वयं संभलना,
प्रयास-बच्चे चाहे जितनी बार करके गिरें,
पर वे पुनः उठकर चलते हैं जरूर,
करते प्रयास संभलकर स्वयं ही संतुलन बनाना,
बच्चों को अमूमन मुस्कुराते देखकर,
किसी भी व्यक्ति का निश्चित ही मुस्कुराना,
बच्चे का रोकर फिर अपनी धुन में मस्त हो जाना,
रोना कमजोरी का कारण नहीं,जीने का कारण बनना,
प्रायः बच्चों का कुछ भी चीज सतत सीखने का प्रयास करना,
और वो भी सीखना वाकई कई गुना जल्दी,
साथ ही साथ
“बच्चों संग बगीचे में घूमना आखिर प्रकृति से दोस्ती करा ही देना”
“जीवन में देता संदेश यही
स्वस्थ रहने का मार्ग यही”
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल