शीर्षक – बचपन
शीर्षक – बचपन
वो बचपन कितना अच्छा था क्यूं इतनी जल्दी बीत गया।
मानो रंग बिरंगा सा था जो बचपन का वो मीत गया।।
न कोई जिम्मेदारी थी न दुनिया की कोई फिकर।
पतंगों से फतेह करते थे कई ऊंचे ऊंचे शिखर।।
जिद पे जब अड़ जाते थे घरवालों को बड़ा सताते थे।
कुछ को वो पूरी करते और कुछ के लिए फिर अड़ जाते थे।।
नए गीतों वाली इस दुनिया में वो बचपन का अब गीत गया।
वो बचपन कितना अच्छा था क्यूं इतनी जल्दी बीत गया।।
काश रंग – बिरंगा वो बचपन फिरसे मुझे मिल जाए।
तो रोंग – रोंग मेरा हर्ष से प्रसन्नित होकर खिल जाए।।
पर कल्पना भरा ये स्वपन स्वपन ही रह जायेगा।
जैसा है अब वर्तमान में यथावत वैसा ही रह जायेगा।।
क्योंकि वो भूतकाल का समय था जो खुशी – खुशी बीत गया।
वो बचपन कितना अच्छा था क्यूं इतनी जल्दी बीत गया।।
©अंकित पांचाल