शीर्षक- “प्रीत पुरानी” (कविता)
यादों के पिटारे को दिल से टटोलने लगी हूं
अब कुछ पल मैं अपने लिए जीने लगी हूं!
रात के अंधियारे हो या दिन के उजाले हो
हर सुख-दुख में सिर्फ तुम ही मतवाले हो!
बदलते मौसमों में प्रीत होगी जितनी पुरानी
उतनी ही गहरी नींव लिए गुजरेगी जिंदगानी!
प्रेम और विश्वास की पिचकारी से छिड़कते हर रंग
धूप-छांव के लहराते क्षणों में शामिल हो हम संग!
मझधार में अटकी हुई नैया का किया सदा बेड़ा पार
जिंदगी की राहों में रंगीन फूल खिला बनाया सदाबहार!
हर खुशनुमा-पल को करूं शुक्रिया ऐसा
पुरानी प्रीत का साथ पतंग और डोर जैसा!
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल