शीर्षक- तुम बनाओ अपनी बस्ती, हमसे दूर
तुम बनाओ अपनी बस्ती,
हमसे दूर आसमां में,
और भरो उड़ान तुम आसमां में,
क्योंकि तुम आज़ाद परिंदे हो।
तुम्हारे सपनें मुझसे विशाल हैं,
क्योंकि तुझमें अभी मौज है,
सागर की तरह उफान है,
हर तरफ से तुम बेखबर हो।
क्योंकि कोई गमो- दर्द नहीं है,
अभी तुम्हारे दिलो- दिमाग में,
तुमको पसंद नहीं है यह जमीं,
और इस पर रहने वाले मैले- कुचले लोग।
और तुझमें इतनी क्षमता भी नहीं,
कि तुम सह सके कोई अकाल- आपदा,
इसलिए तुम बनाओ अपनी बस्ती,
हमसे दूर आसमां में।
क्योंकि तुमको नहीं है चिंता इस बात की,
कि तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार में,
कोई दुःखी भी हो सकता है,
क्योंकि तुम परिवार से निश्चिंत हो।
इसलिए तुम बनाओ अपनी बस्ती,
हमसे दूर आसमां में,
क्योंकि हम मिट्टी के फूल हैं,
और यही हमारा स्वर्ग है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)