शीर्षक -छाई है धुंँध
शीर्षक -छाई है धुंँध
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मेरे साथ! चांँद है और चांँदनी,
और हैं सर्दी की ठिठुरती रातें!
छाई हुई है चहुं और धुंँध सी,
तुम!और में साथ,और मधुर रागिनी!!
चांँदनी की है कायनात,
कोहरा है और तुम हो साथ।
तुम लजाती हुई चांँदनी सी,
तुम चलती गई ,डाले हाथों में हाथ।।
सफ़र यूंँ ही कटता रहा,
कोहरा भी कुछ छट सा गया।
भोर की रश्मियों ने,
किरणें बिखेर दी,
प्रकाश चहुँ और फैलता गया।।
सुबह का अरूण उदय है हुआ,
दिल चाहे उषा की लालिमा को !
मैं!भर लूंँ बांँहों मैं,
जिसका उजियारा सारे जग में हुआ!!
धरा भी नहा ली रोशनी में,
और!तरूवर ने ली अंगड़ाई।
कुसुम -कलिका मंद-मंद मुस्काए,
सूरज ने किरणें बिखराई !!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर