शीर्षक : चुनावी रेला – डी के निवातिया
तिथि : २९ जनवरी २०२२
दिन : शनिवार
विधा : गजल
विषय : राजनीतिक व्यंग
शीर्षक : चुनावी रेला
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चुनावी रेला रे चला चल चला चल,
बना के खेला रे चला-चल चला-चल !!
जनारदन जनता बन्दर का रेला है,
खिला के केला रे चला-चल चला-चल !!
कबाड़ी जैसे है, ये आदम के पुतले ,
लदा के ठेला रे चला-चल चला-चल !!
दिखाकर मिठाई, बुला ले, पटा ले
जमा के ढेला रे चला-चल चला-चल !!
गधों की है मण्डी, बिकेंगे मुफ्त में
बना के चेला रे चला-चल चला-चल !!
पिलाकर के दो पैग, घसीटे रैना-दिन,
दबा के पेला रे चला-चल चला-चल !!
मुनादी करा दी, नेता जी ने, घर घर ,
मिलेगा धेला रे चला-चल चला-चल !!
नेता जी के दल-बल सभी खिल उठे है,
बसन्ती बेला रे चला-चल चला-चल !!
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स्वरचित मौलिक : डी के निवातिया