शीर्षक—–क्या बात है।
किताबो के पन्ने पलट के सोचेते है।
यूँ पलट जाये जिंदगी तो क्या बात है।
तमन्ना जो पूरी हो ख्वाबो मे,
हकीकत बन जाये तो क्या बात है।
कुछ लोग मतलब के लिए ढूँढ़ते है।
बिन मतलब कोई आये तो क्या बात है।
जिंदगी रहने तक तो ख़ुशी दूंगा सबको।
किसी को मेरी मौत पे खुशी मिल जाये तो क्या बात है।
जो शरीफो की शराफत मे ना हो बात।
एक शराबी के गमो को दो घूँट से साँझा कर आये तो क्या बात है।
जिसे ढूंढा आज तक सिर्फ ख्वाबो मे।
वो हो जाये मेरी हकीकत मे तो क्या बात है।
ईशक-ईशक तो हर कोई करता,
कोई उम्र भर साथ देने बाला हाथ पकड़ जाये तो क्या बात है।
महफ़िल मे मेरी शायरी की वाह-वाह करती हज़ार दुनिया, भगत कोई तेरे हरफो के पीछे छुपे दर्द को समझ जाये तो क्या बात है।
रमन भगत