शीर्षक: कोशिश स्वयं से मिलने की
शीर्षक: कोशिश स्वयं से मिलने की
मैं हूँ कौन हूँ मैं ? क्यों हूँ?
प्रश्न स्वयं से स्वयं के लिए
अपने क्लान्त मन को शांत करने प्रकृति के समीप
आज एक बार फिर पहुँच गई शायद उत्तर मिले
घोर घटाओ के बीच निहारती प्रकृति के रंगों को
बादलो के बीच मानो बून्द रूपी
जीवन मचल रहा हो पुनः शरीर धारण करने को
मन को शांत करने डूबी रही मैं
संध्या समय की तरह कि शायद अहसास हो
मानो प्रश्नों के उत्तर की भी संध्या समीप हो और
कौन हूँ ? क्या लक्ष्य मेरा?
यह उत्तर मुझे मिल जाये और
मन की क्लांतता शांत हो
शून्य क्या है? शून्य शक्ति है क्या?
सत्य क्या है?सत्य की खोज ही शून्य है क्या?
क्या मैं भी शून्य से उत्त्पन्न हूँ ?
कौन हूँ ?क्यो हूँ?जीवन शून्य में ही समाहित हैं क्या?
क्या मैं शून्य का ही अंश हूँ?
बहुत प्रश्न कचोटते हैं,झकझोरते हैं मुझे
प्रश्न यही किशरीर को जब आत्मा छोड़ती हैं
तो कहाँ जाती हैं?क्या आत्मा ही मैं हैं?
क्या शरीर त्याग से आत्मा देवांश रूप ले लेती हैं?
आज प्रश्नों को ले खुले आसमान के नीचे ही पहुँची
स्वयं ही स्वंय के साथ एक मनभावन वातावरण में
अपने व्यथित मन की शांति के लिए
दूर तक निहारती रही उस अदृश्य शक्ति को
जो न जाने कैसे चला रही हैं जीवन शक्ति को?
कैसे डाल देती हैं प्राण वायु कण कण में ?
आज कुछ प्रश्न मेरे स्वयं के लिए स्वयं से
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद