शीर्षक-“कल्पना”(18)
बस यही कोशिश मैं हर बार करती हूँ,
दिमाग की कल्पना को अपनी लेखनी के माध्यम से शब्दमोती की माला में पिरोती हूँ,
कथा,कविता,कोट्स,लेख इत्यादि चाहे कोई भी हो विधा,
हिंदी और मराठी भाषाओं में हरदम बरसते रहे सकारात्मक रस सुधा,
यह मंच मेरा मायका बन सदा ही
लेखन में कदम आगे बढ़ाने को करता बाध्य,
इसीलिए अब मेरे मन में बसता है,मनमोहक
मनपसंद काव्य
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल