शीर्षक -आँख क्यूँ नम है!
शीर्षक -आँख क्यूँ नम है!
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जन्म लिया जब बेटी ने तो,
परिवार में सभी बहुत खुश थे।
आई प्यारी लक्ष्मी है घर में,
मात-पिता पल-पल बलिहारी थे।।
धीरे-धीरे बेटी बड़ी हो रही,
पढ़ लिखकर होशियार हो गई।
मंजिल पाने को कदम बढ़ा रही,
बनकर डा०आज बेटी काबिल हो गई।
समय आया अब बेटी विवाह का,
माता -पिता बहुत व्याकुल हैं।
छोड़कर इक दिन जाएगी बेटी,
यह सोचकर आँख बहुत नम है!
विदाई हुई जब प्यारी बिटिया की,
आँख से निर्झर दादी के बहता था।
बाँहों के आगोश में भरकर मुझको,
दादी ने अनंत आशिर्वाद दिया था?
चली पराए घर बिटिया रानी,
यह कैसी जगत की रीति है।
घर की शान, मान जो कहलाए,
आज उसी की विदाई में आँख
क्यूँ नम है!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर