शीर्षक:सिलसिला ख़्वाब का
शीर्षक:सिलसिला ख़्वाब का
कभी लगता है मानो देह इंसान की मिली
तो स्वप्न सच होने में देरी नही होगी
इसी उधेड़बुन में जीवन की गाड़ी चली
सिलसिला ख्वाबों का बस यूँ ही चलता रहा
कभी लगता है मानो होगी सभी इच्छा पूरी
पर कभी कभी अंतर्मन की पीड़ा तोड़ देती हैं ख्वाब
नहीं रह पाते ख्वाब सच होने की राह पर
सिलसिला ख्वाबों का बस यूँ ही चलता रहा
घनीभूत सी यह पीड़ा दर्द बन रहा जाती हैं ख्वाबो में
और कभी- कभी यह देह को देती हैं असीम पीड़ा
लयात्मक गति की तरंगों पर मानो बाधा बनती हैं
सिलसिला ख्वाबों का बस यूँ ही चलता रहा
मन कहता है कभी कभी कि छोड़ो संसार के बंधन
करो स्वयं को अभिव्यक्त कि हम स्वप्न नही है
जो हम चाह रहे है वही होता हैं जीवन मे फिर भी
सिलसिला ख्वाबों का बस यूँ ही चलता रहा
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद