शीर्षक:शायद कोई नही
****शायद कोई नही****
वो पहला प्यार और उसमें
उसके द्वारा इस्तेमाल कर
ठुकरा देना कितना असहनीय था
कितनी पीड़ा दे गया अतल तक
क्या कोई उसके दर्द को
महसूस कर सकता है
शायद नही…कोई नही..?
फिर भी वो पाषाण सी
पथराई आँखों से उनकी
प्रतीक्षा में लगी रही
अनगिनत दिनों तक
अपलक उसकी यादों में
उसकी राह निहारती रही
क्या कोई उसके दर्द को
महसूस कर सकता है
शायद नही…कोई नही..?
कठिन था उसका वो पागलपन
पर हकीकत यही हैं जिससे
वो वाकिफ़ भी थी पर
किस्मत को मंजूर था
उसका उसके द्वारा जलील होना
यही हैं कलयुगी प्रेम
बस कहने मात्र को ही
क्या कोई उसके दर्द को
महसूस कर सकता है
शायद नही…कोई नही..?
जब तक चाहा इस्तेमाल किया
मन भर गया तो बस छोड़ दिया
क्यों हुआ ऐसा समझ से परे क्योंकि
वो समझी थी उसको अपने सा ही
क्या कोई उसके दर्द को
महसूस कर सकता है
शायद नही…कोई नही..?
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद