शीर्षक:शब्दो की धधकती ज्वाला
सभी के भीतर शब्दो की
ज्वाला धधकती हैं
शब्द प्रतीक्षा करते हैं कि
कैसे वो इन भावों को उकेरे
शब्द प्रतीक्षा में उछाले मारते हैं कि
कब कोई भाव मचले तो हम रूप ले
लेखनी का ओर लिख डाले वो अंतरिम भाव
जो इंतजार में है कि बस कोई छू मात्र दे और
हम समुद्र की लहरों से उछाल मारे उनको
रूप देने को,एक सूखी सी बंजर धरती पर मानो
पानी की एक जीवनदायिनी धार चली आई हो
सभी के भीतर शब्दो की
एक ज्वाला धधकती हैं
बस शब्द प्रतीक्षा करते हैं कि
कैसे संकुचित से शब्दों को सुप्तावस्था से निकाल
रूप दे दिया जाये एक गीत का एक कविता का
जो फैल जाए चहु दिशाओं में शब्द रूप ले
वही गीत जो शब्द लय कि प्रतीक्षा में जन्म लेने को
मचल रहा है मन के किसी कोने में दबा सा
उस दबाव के प्रभाव से बाहर आने को
आज सोचती हूँ उन कुचलित से मनोउद्गारों को
क्यो के रूप दिया जाए ,क्यो न शब्दो से उनका
रूप श्रंगारित किया जाए
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद