शीर्षक:रोटी दो जून की
शीर्षक:रोटी दो जून की
दो जून की रोटी कमाने में
कुछ तो छूट गया पीछे
अपनो को छोड़ भागमभाग में
रफ्तार पकड़ गया
न जाने क्यूँ दो जून की रोटी जमाने में।
दुआओ में शायद असर कम हो गया
आज बस पैसे पर ही
भरोसा ठहर गया
अपने सभी पराये बना लिए
न जाने क्यूँ दो जून की रोटी जमाने में।
अपनों से ज्यादा आजकल
पैसों पर भरोसा बन गया
आदमी ही आदमी से खोफ़ खाने लग गया
पैसो के पीछे भागने जो लग गया
न जाने क्यूँ दो जून की रोटी जमाने में।
कुछ कमियां तो रही संस्कार में
रही होंगी दूरियां अपनो में
कुछ बड़ो को इज्जत देबे में
हम आज पीछे रह गए
न जाने क्यूँ दो जून की रोटी जमाने में।
अनचाहे ही गुनाह सा होने लगा
मैंने भी आपने भी सभी ने किया
अपनो को छोड़ कमाने निकल पड़े
अनजाने ही बहुत कुछ पीछे छूट गया
न जाने क्यूँ दो जून की रोटी जमाने में।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद