शीर्षक:यादों के खंडहर
****यादों के खंडहर****
अतीत की यादों के ये खण्डहर
आज भी सुनसान भुताहे से हैं
मौन हैं पर बवंडर बन तड़फाते हैं
खड़े यादों में सीना तान हो जाते हैं
अनगिनत यादों का कारवां मानों
संग चलता हैं और तोड़ता हैं मुझे
कितनी कही अनकही बातें हैं जो दफ़्न हैं
बहती हैं उनकी यादें तूफान सी आवाज से
मानों नष्ट कर देंगे सारे तूफान मेरे रेतीले से
उद्दवेलित होते मन के दबे भाव रूपी भवन को
यादों की तेज हवा मानो बह चली हो
और मेरे मन के भीतर तक झोंके पहुंच गए हों
भीतर बड़े जज़्बात मानों यादों से हिल गए हों
वक़्त की हवाओं संग अतीत की यादें
गुजरते वक़्त की वो मुलाकातें
यादों की कहानियां मेरे मन के कोने में दबी सी
हर कहानी मानो यूँ ही अंतहीन होती सी
पल पल अतीत की यादों में
घूमते हुए खंडहरों के बीच भटकती हुई सी
मेरी जिंदगी सुनसान सी राह पर
बस यूँ ही बीतती हुई…!!
भटकन में चलती हुई…!!!
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद