शीर्षक:बादल
शीर्षक: बादल
बादलो की प्रीत बस बूंदों से!
ए बादल तू बरसा दे अपनी प्रीत को!!
बादल को भी मानो प्रीत हुई बूंदों से
मचल रहा है मिलन को उनसे
आज बरसात देख लग रहा है मानो
बादल खुश हुआ बून्द के मिलन से
बादलो की प्रीत बस बूंदों से!
ए बादल तू बरसा दे अपनी प्रीत को!!
उनके प्रेम का अंकुरण मानो फुट पड़ा हो
उस बीज की तरह जो पृथ्वी के गर्भ में
पड़ा था न जाने कितने दिनों से उस एक
बून्द की प्रतीक्षा में कि हो मेरा अंकुरण
बादलो की प्रीत बस बूंदों से!
ए बादल तू बरसा दे अपनी प्रीत को!!
नव कोंपले प्रतिक्षारत हैं अपने मे जीवन देख
खुली हवा में सांस लेने को,लहराने को हवा में
बून्द की नमी से होगा मेरा नव जीवन संचार
फुट पड़ेंगी मुझमे भी नवजात पत्तियां
बादलो की प्रीत बस बूंदों से!
ए बादल तू बरसा दे अपनी प्रीत को!!
मिट्टी बूंदों के स्पर्श को मानो हो रही है आतुर
पौधा भी लालायित हैं पेड़ रूप में आने को
कर रहा है प्रतीक्षा बादलो को देख
बूंदों के बरसने की ,उसमे भीगने की
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद