शीर्षक:प्रश्न चिन्ह
२२-
न जाने क्यों..
जीवन के इस सफ़र में,
बस यूँ ही चलते चलते
न जाने क्यों
एक ऐसा मोड़ आया है,
जहां से एक नया राही
हमसफ़र बनने की
इच्छा ले आ रहा है
ओर ठहर सा गया हैं
मेरे अन्तस् में गहरे से।
न जाने क्यों..
मेरी मर्यादाओं, सीमाओं
समाजिक सम्बन्धो के
बंधन क्या टिक पायेंगा अब
या जीवन मेरा फिर
उसी पहली धुरी पर ही
विचरता हुआ चलेगा
न जाने क्यों..
क्या चल पाएगा वो इन
बन्धनों में मेरे साथ हर कदम
जीवन के हर मोड़ पर या बस
रुक जाएगा छोड़ जाएगा
इस मोड़ से भी आगे मुझे
अकेले ही रहने को ..ओर वो
निकल जायेगा…..
एक औऱ नई राह पर आज
बस ये ही प्रश्न तो ठहर सा गया हैं
एक प्रश्र चिन्ह सा बन कर
न जाने क्यों…
एक प्रश्न सा..
डॉ मंजु सैनी